दिसम्बर जाते जाते बहुत जख्म दे गया। नए साल का स्वागत करने के लिए मेरे पास सिर्फ दर्द के दोहे ही हैं। जुल्म की शिकार उस अनाम लड़की को हम दर्द के सिवा कुछ नहीं दे पाए। क्या वक्त हमें माफ कर पाएगा?
फिर वहशत के सामने टूट गई उम्मीद
देश जगाकर सो गई बिटिया गहरी नींद
देह में गहरे घाव थे, दिल था लहूलुहान
हैवानों से जूझती, कब तक नाजुक जान
अबके दब पाई नहीं, उस लड़की की आह
जुल्म के नंगे नाच का, सड़कें बनी गवाह
वह लड़की बेनाम सी, बन गई बड़ी मिसाल
सड़क पे उतरे लोग फिर गुस्से में हो लाल
दिल में सबके आग थी, आंखें थीं अंगार
औरत क्यों सहती रहे, मर्द के अत्याचार
खूब बढ़ी ये गंदगी, कर न पाए साफ
हम भी हैं दोषी बड़े, बिटिया करना माफ
मानवता को नोंचते, जुल्मी के नाखून
बस डंडा फटकारता, नपुंसक कानून
सबको आजादी मिली, इतना रहा मलाल
औरत कब आजाद हुई, भारत मां बेहाल
शोकाकुल हैं लोग सब, सदमे में है देश
जाते जाते दे गई सबको बिटिया संदेश
दुनिया सुंदर है बहुत, वहशी आंखें खोल
हमला मत कर किसी पर आजादी अनमोल
फिर वहशत के सामने टूट गई उम्मीद
देश जगाकर सो गई बिटिया गहरी नींद
देह में गहरे घाव थे, दिल था लहूलुहान
हैवानों से जूझती, कब तक नाजुक जान
अबके दब पाई नहीं, उस लड़की की आह
जुल्म के नंगे नाच का, सड़कें बनी गवाह
वह लड़की बेनाम सी, बन गई बड़ी मिसाल
सड़क पे उतरे लोग फिर गुस्से में हो लाल
दिल में सबके आग थी, आंखें थीं अंगार
औरत क्यों सहती रहे, मर्द के अत्याचार
खूब बढ़ी ये गंदगी, कर न पाए साफ
हम भी हैं दोषी बड़े, बिटिया करना माफ
इनको कैसे झेलता यह सारा संसार
इन नामर्दांे के लिए औरत सिर्फ शिकार
इन नामर्दांे के लिए औरत सिर्फ शिकार
बस डंडा फटकारता, नपुंसक कानून
सबको आजादी मिली, इतना रहा मलाल
औरत कब आजाद हुई, भारत मां बेहाल
शोकाकुल हैं लोग सब, सदमे में है देश
जाते जाते दे गई सबको बिटिया संदेश
दुनिया सुंदर है बहुत, वहशी आंखें खोल
हमला मत कर किसी पर आजादी अनमोल
खूब बढ़ी ये गंदगी, कर न पाए साफ
ReplyDeleteहम भी हैं दोषी बड़े, बिटिया करना माफ
- चारों ओर फैली है यह गंदगी और सबसे अधिक गंदा हैं आदमी का मन .
सिर्फ कुछ दिनो के शोर से क्या होता है....मानसिकता मे बदलाव लाने के लिये सतत प्रयास की जरुरत है....अन्यथा हम यू ही घुट्ते रह जायेंगे....
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