Wednesday, January 26, 2011

एक पाक साफ इंसान को नहीं मिला इंसाफ

‘जग में बहुत लुटेरा ऊ, केकरा केकरा नाम बतावा? हे जमींदार लूटे.... हे साहूकार लूटे... और लूटे घुसखोरवा हो, केकरा केकरा नाम बतावा’ यह गीत विनायक सेन ने सुनाया था, करीब 30 साल पहले। वह एक हौसलों से भरी हुई शाम थी। हम सब मित्रों ने लगभग विनायक को घेर लिया था कि हमने इतने गीत सुनाए हैं अब उसकी बारी है। तब विनायक ने पूरी लय और ताल में यह गीत सुनाया था। वह हम सबके कुछ कर गुजरने के दिन थे और हम कर भी रहे थे। विनायक डाॅक्टरी की पढ़ाई करके पैसा कमाने की बजाय कुछ अलग करने की धुन में रसूलिया होशंगाबाद पहुंचे और फिर उसी जिले में स्थित किशोर भारती पहुंच गए। लेकिन वे यहां काम नहीं करते थे बल्कि किशोर भारती के कार्यकर्ता की हैसियत से दल्ली राजहरा में नियोगी के साथ काम करने गए थे। इलीना यहां ग्रामीण अध्ययन के बड़े प्रोजेक्ट को लीड कर रही थीं और मैंने भी कालेज की पढ़ाई पूरी करके इलीना के प्रोजेक्ट को ज्वाइन कर लिया था। उसके बाद विनायक से मुलाकात हुई। यह मई 1981 की बात है।

उन दिनों पिपरिया में हम कई मित्र समता युवजन सभा में काम करते थे। पिपरिया के निकट पलिया पिपरिया गांव में किशोर भारती नाम की स्वयंसेवी संस्था थी। इस दौरान कई बार विनायक से बातचीत हुई। विनायक और इलीना विचारों से माक्र्सवादी हैं और हमारा समूह समाजवादियों का था। किशन पटनायक हमारे नेता थे। इसके बावजूद हमें साथ काम करने या बात करने में कभी दिक्कत नहीं हुई। यही विनायक की विशेषता है वह अपने विचार किसी पर थोपते नहीं हैं और बड़े ध्यान से सबकी बात सुनते हैं। विनायक हमसे सीनियर थे और हम लोग बिलकुल नए थे। उनसे बहुत सी बातें जानने-सीखने को मिलीं। नियोगी के काम के बारे में सबसे पहले और सबसे ज्यादा जानकारी विनायक से ही मिली।

देश जानता है कि शंकरगुहा नियोगी पिछली सदी के सबसे कामयाब और वजनदार जननेता थे। वे भी विचारों से माक्र्सवादी थे लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते थे। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता भी है। नियोगी ने जनसंघर्ष के लिए उन्हीं औजारों का इस्तेमाल किया जिन्हें गांधी ने स्वाधीनता संघर्ष के दौरान इस्तेमाल किया था। नियोगी के अभियान ने मजदूरों की शराब छुड़वा दी थी। 30 से 50 हजार लोगों ने शराब छोड़ दी थी। नियोगी मजदूरों के स्वास्थ्य के लिए बुनियादी काम करना चाहते थे इसलिए किशोर भारती के माध्यम से विनायक वहां पहुंचे। शहीद अस्पताल की नींव डालने वालों में से एक विनायक सेन भी हैं। पीयूसीएल से भी हम इसके बाद ही जुड़े। 1982 में दल्ली राजहरा में शराब माफिया ने शराबबंदी मोर्च के बाबूलाल को जान से मारने की कोशिश की थी। इसकी जांच करने पीयूसीएल की टीम गई थी। उसमें मैं भी शामिल था। 1981 और 1982 में किशोर भारती ने मध्यप्रदेश के सक्रिय जन संगठनों और संस्थाओं के साथ तीन बड़ी बैठकें की थीं। इन बैठकों में मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान भी शामिल हुए थे। इसमें विनायक सेन और शंकरगुहा नियोगी भी आए थे। इन सभी लोगों ने गैरबराबरी और नाइंसाफी के खिलाफ अपने रचनात्मक योगदान को लेकर बहस बातचीत की थी।

इसके बाद इलीना और विनायक रायपुर पहुंच गए। इलीना वहां रूपांतर संस्था के तहत काम करने लगीं और विनायक स्वास्थ्य और मानवाधिकार के क्षेत्र में अपना योगदान देने लगे। मैं 1990 तक किशोर भारती से जुड़ा रहा। संस्था के आकस्मिक निधन के बाद मैं दिल्ली आ गया। इस बीच इलीना के साथ कुछ मुलाकातें हुईं, लेकिन विनायक के साथ मिलने का मौका नहीं मिला। 1997 में एक शोध अध्ययन के सिलसिले में रायपुर जाना हुआ। तब विनायक-इलीना से मिलने का मौका मिला। उस समय उनके परिवार में दो बेटियों का आगमन हो चुका था। छोटी शायद पांचवीं और बड़ी आठवीं में थी। पूरे परिवार के साथ मैंने अच्छा खासा समय बिताया था। विनायक में कोई परिवर्तन नहीं आया था। वह वैसे ही कुछ ऊंचा पजामा और साधारण कुर्ता पहने हुए थे। अंदाज वहीं पुराना था। लगा जैसे इतने बरसों न मिलने का कुछ असर ही न पड़ा हो। उन्होंने वहां कुछ जमीन खरीद ली थी और वे खेती में भी समय देने लगे थे। मैं वहां लगभग दो हफ्ते रहा। उनकी दोनों बेटियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा। मैंने उन्हें गुजरे जमाने के कुछ रोचक किस्से भी सुनाए थे।

इसके बाद लंबा समय बीत गया। विनायक से मुलाकात का मौका नहीं मिला। इस बीच इलीना से जरूर मुलाकात हुई। इलीना महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के साथ जुड़ गई थी और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही थीं। लेख के सिलसिले में कई बार इलीना से फोन पर भी बात हुई है। फिर हम मिले विनायक की गिरफ्तारी के विरोध में 2009 में नई दिल्ली के रवींद्र भवन में आयोजित कार्यक्रम में। इसे लेकर मैंने कुछ लिखा भी था। इसके कुछ समय बाद पता चला कि इलीना को स्तन कैंसर ने घेर लिया है। तब एकाध बार इलीना से बात हुई। समाचार मिलते रहते थे और कहीं से भी ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिला कि विनायक या इलीना का माओवादियों से किसी तरह का कोई संपर्क है या उन्होंने माओवादियों की राजनीतिक लाइन को स्वीकार कर लिया है। यह जरूर है कि देश के कुछ लोग मानवाधिकार के मामलों को लेकर ज्यादा संवेदनशील रहते हैं। विनायक ऐसे ही लोगों में शुमार हैं। यह सच भी समझदार लोगों से छिपा नहीं है कि देश में मानवाधिकार हनन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। खासकर संवेदनशील क्षेत्रों के मासूम लोगों को बड़ी कुर्बानी देनी पड़ रही है। विनायक ऐसे मामलों को उठाने में सबसे आगे रहते हैें। उन्हें इसी पक्षधरता की कीमत चुकानी पड़ रही है। वर्ना विनायक चाहते तो दूसरे सफल डाॅक्टरों की तरह दौलत और नाम कमा सकते थे लेकिन उन्होंने दूसरी राह पकड़ी। वे सिर्फ नाड़ी देखकर दवा की पर्ची लिखने तक ही अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते थे। वे स्वास्थ्य को लेकर आमजन को जागरूक करना चाहते थे और स्वास्थ्य राजनीति की बखिया उधेड़ने से भी नहीं चूकते थे। दूसरी तरफ वे मानवाधिकार के सबसे बड़े पैरोकार के रूप में भी उभर रहे थे। यही बात छत्तीसगढ़ की सरकार को नागवार गुजर रही थी।

विनायक सेन को देशद्रोह में उम्रकैद की सजा की खबर इतने दिन बाद भी एक मजाक लगती है। आखिर कैसे कोई अदालत यह निर्णय दे सकती है? यह सोचना सचमुच मजाक लगता है कि स्वास्थ्य और मानवाधिकार के लिए चुपचाप अपना काम करने वाला यह शख्स देहद्रोही हो सकता है। जो लोग विनायक सेन को जानते हैं, उन्हें यह समझने में देर नहीं लगेगी कि यह एक राजनीतिक फैसला है जो सरकार के इशारे पर लिया गया है। 2010 ऐसे दो फैसलों की वजह से भी याद किया जाएगा। पहला फैसला रामजन्म भूमि विवाद को लेकर सामने आया था और दूसरा फैसला विनायक को देशद्रोही ठहराने का है। इन दोनों ही फैसलों का असर दूर तक जाएगा। विनायक का फैसला न्याय, बराबरी और मानवाधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक चेतावनी है। छत्तीसगढ़ के विशेष कानून से माओवादियों पर अंकुश भले न लगा हो लेकिन वंचित तबकों के साथ काम करने वाले जन संगठन और संस्थाएं जरूर दहशत में आ गई हैं। इसी विशेष कानून के तहत विनायक सेन को लंबे समय तक जेल में रखा गया, फिर सुनवाई शुरू हुई और सुनवाई में क्या हुआ होगा यह फैसला सुनकर ही समझ आ जाता है।

इस फैसले से कई लोग हैरत में हैं। विनायक कभी देश और समाज के लिए खतरनाक नहीं रहे। उन्होंने कभी माओवादियों के हिंसक संघर्ष का समर्थन नहीं किया। वे नागरिक अधिकारों के हिमायती हैं इसलिए हमेशा सजग रहते हैं कि कहीं आम आदमी के इन अधिकारों का हनन तो नहीं किया जा रहा। डाॅक्टर होने के नाते वे जानते हैं कि इलाज कहां से शुरू किया जाना चाहिए। पिछले कई दिनों से मैं यही सोच रहा हूं कि विशाल लोकतंत्र में क्या विनायक सेन जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के काम करने की जगह रहेगी या नहीं। सलवा जुडुम का विरोध और मानवाधिकारो की पैरवी करने से ही विनायक रमन सरकार की आंख की किरकिरी बने हुए थे। छत्तीसगढ़ में माओवादियों पर अंकुश लगाने के नाम पर बनाया गना छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम दरअसल विरोधियों को ठिकाने लगाने का जरिया बन गया है। आज हालत यह है छत्तीसगढ़ में स्वयंसेवी संस्थाओं और जन संगठनों को काम करने में बहुत दिक्कत आ रही है। वे सब लोग जो अपने काम के चलते गरीब आदिवासियों के नजदीक हैं, सरकार की मंशाओं को लेकर बहुत डरे हुए हैं। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने सरकार के काम पर सवाल उठाये तो उन्हें झूठे मामलों मेें फंसाकर विनायक की तरह जेल में ठंूस दिया जाएगा।

विनायक सेन के संघर्ष को सलाम करते दो गीत

1
बोल विनायक बोल
बोल विनायक बोल
  क्यों गरीब का लोकतंत्र में अब तक पत्ता गोल
  बोल विनायक बोल
  बोल कि क्या है सलवा जुडुम, कैसी उसकी मार
  बोल कि कैसे कुचल रहे हैं, लोगों के अधिकार
  बोल कि अंधा शासन क्यों है इतना डावांडोल
  बोल विनायक बोल
  अरे डाॅक्टर बाबू बोलो, क्यों गरीब बीमार
  कहीं रोग है और कहीं का, करे इलाज सरकार
  क्यों गरीब की सुनवाई में होती टालमटोल
  बोल विनायक बोल
  क्या गरीब माओ को समझे, क्या गांधी को भाई
  भूखे पेट ही सोना होगा हुई न अगर कमाई
  वो बैरी सत्ता के मद में आंक न पाए मोल
  बोल विनायक बोल
  जन विशेष कानून बनाए जिसमें न सुनवाई
  राजनीति के पंडित कैसे बन जाते हैं कसाई
  सीधी साधी जनता पिसती, सत्ता पीटे ढोल
  बोल विनायक बोल
  करे कोई और भरे कोई है, ये कैसा दस्तूर
  बेकसूर को सजा मिली और न्याय खड़ा मजबूर
  इक दिन तो इंसाफ मिलेगा, यही सोच अनमोल
  बोल विनायक बोल
बोल विनायक बोल

2
ओ कानून कसाई।
तूने कैसी की सुनवाई।।
बिन सबूत ही संत ने जैसे उमर कैद है पाई।।
अंगरेजों ने जैसे तिलक को सजा सुनाई।
देशद्रोह में गांधी को जेल की हवा खिलाई।
और आज इस लोकतंत्र में फंसे विनायक भाई।।
ओ कानून कसाई......
कैदी से कानूनन मिलने में नहीं बुराई
जेलर ने पहरे में मुलाकात करवाई
अब वे कहते हैं कि तुमने खबर उधर पहुंचाई
ओ कानून कसाई....
रोग को पहचाना और रोगी की करी भलाई
रोग तो सरकारी था, फंसा डाॅक्टर भाई
यह सरकार भी रोगी भैया, इसको भी दो दवाई
ओ कानून कसाई.....

Saturday, January 1, 2011

नए साल की धूप

1
पत्ता पत्ता देखती चिड़िया अपना रूप
आंगन में नाचत फिरी नए साल की धूप

ऊंचे पर्वत पेड़ से, नीचे धरती दूब
सबको दुलराती चली, नए साल की धूप

गली मुहल्ले के सभी, बच्चे खेलें खूब
टप्पा खाए गेंद बन, नए साल की धूप

बीते दिन पत्थर भये, गए नदी में डूब
मछली बन तैरी मगर, नए साल की धूप

बांध के पानी खींचती, रस्सी गहरे कूप
ऐसे मन को बांध ले, नए साल की धूप

हवा चली और उड़ गई, बीते दिन की ऊब
ऐसे कुछ गरमा रही, नए साल की धूप

2
दिल में उतर के प्यार जगाए नया बरस
पिछले बरस के दाग मिटाए नया बरस

आखिर वो उनके चेहरे की मुसकान बन सके
अब मुफलिसों पे जुल्म न ढाए नया बरस

लाशों में ढंढ़ते हैं जो हर मसअलों का हल
उन सिरफिरों को राह बताए नया बरस

मंदिर और मस्जिदें तो यहां बहुत बन चुकीं
गुरदी की झोपड़ी भी बनाए नया बरस

मेरठ न बनारस में फिर इंसानियत जले
दंगाइयों के काम न आए नया बरस

फिर बढ़के अपने हक को ये मजलूम छीन लें
इक इंकलाब मुल्क में लाए नया बरस

नया साल मुबारक
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