इन दिनों सिर्फ दर्द का दरिया ही है। डुबकी लगाते रहिए या डूब कर मर जाइए। बीते दिनों बहुत कुछ लिखा गया, यात्राएं हुईं, मगर इस दिल को तसल्ली न हुई। दर्द कुछ ऐसे बयान होता है -
कतरा कतरा जिंदगी लगे
दर्द की तन्हा नदी लगे
मेहमान बनके आई है खुशी
और उधार की हंसी लगे
अपने से लगें ये अंधेरे
क्यों पराई रोशनी लगे
ढह गए यकीन के किले
दिलफरेब आशिकी लगे
है वही जमीन ओ आस्मां
बदला बदला आदमी लगे
झूठ और गवाह पर टिका
इंसाफ भी तेरा ठगी लगे
पीछा करना भी ख्वाब का
क्यों उन्हें आवारगी लगे
सहमा सहमा सा है ये समा
और उदास चांदनी लगे
तेरी रहनुमाई भी कमाल
रहबरी भी राहजनी लगे
झूठ बोलना गुनाह है
सच कहूं तो दिल्लगी लगे
मुझको देगा क्या खुदा पनाह
उसमें भी तो पैरवी लगे
कतरा कतरा जिंदगी लगे
दर्द की तन्हा नदी लगे
मेहमान बनके आई है खुशी
और उधार की हंसी लगे
अपने से लगें ये अंधेरे
क्यों पराई रोशनी लगे
ढह गए यकीन के किले
दिलफरेब आशिकी लगे
है वही जमीन ओ आस्मां
बदला बदला आदमी लगे
झूठ और गवाह पर टिका
इंसाफ भी तेरा ठगी लगे
पीछा करना भी ख्वाब का
क्यों उन्हें आवारगी लगे
सहमा सहमा सा है ये समा
और उदास चांदनी लगे
तेरी रहनुमाई भी कमाल
रहबरी भी राहजनी लगे
झूठ बोलना गुनाह है
सच कहूं तो दिल्लगी लगे
मुझको देगा क्या खुदा पनाह
उसमें भी तो पैरवी लगे