Sunday, September 11, 2011

अनशन: 12 दिन और 11 साल

   कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे, रामलीला मैदान की यही हालत है। 13 दिन तक झंडा, टोपी और आंदोलनकारियों के शरीर पर तिरंगा पोतने वालों का अन्ना मेला खत्म हो गया है। वे फिर पुरानी चीजें बेचने में जुट गए हैं। अन्ना अपने घर चले गए। मैदान में अब भी कुछ पोस्टर बैनर लटके हुए हैं जो उस ऐतिहासिक अनशन की गवाही देते जान पड़ते हैं जिसने देश की सर्वोच्च संस्था संसद को भी दिन में तारे दिखा दिए।
         उधर मणिपुर में एक महिला 11 साल से अनशन पर है उसे सरकार नली के जरिये तरल खाद्य देकर जिंदा रखे हुए है। वह मणिपुर में लागू एक ऐसे कानून को खत्म करने की मांग कर रही है जिसने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (एएफएसपीए) हटाने के लिए इस लौह महिला ने अनशन करने का रिकार्ड बनाया है।
        1 नवम्बर 2000 को 29 साल की इस युवती ने अपने सामने सैन्य बलों को दस निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाकर मारते देखा था। दूसरे दिन से ही इरोम चानू शर्मिला अनशन पर बैठ गई। तीसरे दिन उन्हें आत्महत्या के प्रयास में गिरफ्तार  कर लिया गया। अब 11 साल हो रहे हैं। लौह महिला का अनशन नहीं टूटा है। कानून के मुताबिक हर 14 दिन बाद उसे अदालत में पेश कर हिरासत अवधि बढ़ाई जाती है। अस्पताल के उस हिस्से को जेल बना दिया गया है जहां इरोम भर्ती है। कानूनन उसे एक साल से ज्यादा कैद नहीं रखा जा सकता इसलिए हर साल दो-तीन दिन की रिहाई का नाटक किया जाता है फिर गिरफ्तार  कर लिया जाता है। इस तरह सबसे ज्यादा गिरफ्तार  और रिहा होने का रिकार्ड भी इरोम के नाम है।
        मणिपुर उत्तर पूर्व का छोटा राज्य है इसलिए न देश के जागरूक लोग इसे लेकर कुछ सोच पा रहे हैं न संसद ही इस पर विचार करने को तैयार है। हमारे माननीय सांसदों ने इरोम चानू शर्मिला के उस अनशन की कीमत नहीं समझी जो मणिपुर की आम जनता के दिलों को आज भी झकझोर रहा है। कैसे लोकतंत्र के पंडित इस जांबाज महिला के अनशन की अनदेखी कर सकते हैं?
        पूरा देश अभी अन्ना के आंदोलन की आधी जीत पर खुश है। संसद के अंहकार को टूटता देखकर सबको जैसे राहत मिली हो। उस दिन हम भी अन्ना की पाठशषाला में हाजिरी लगाकर लौटे थे। अन्ना के अनशन और युवाओं का जोश देखकर अचानक ही इस लौह महिला की याद आ गई। खबर थी कि इरोम ने अन्ना से मदद मांगी है। लेकिन अन्ना या उनकी टीम ने इस बारे में क्या कहा, मालूम नहीं। 
मेट्रो से लेकर रामलीला मैदान तक हमने अनूठा नजारा देखा। लगातार जत्थे आ रहे थे। लोगों के सिर पर अन्ना टोपी और चेहरे, बांह व शरीर पर तिरंगे के रंग नजर आ रहे थे। रामलीला मैदान जैसे प्रषिक्षण स्थल बन गया था। लोग परिवार सहित रामलीला मैदान पहुंच रहे थे। अन्ना हजारे की निष्छल बातें सीधे लोगों के दिल में उतर रही थीं। उनके बोलने का तरीका और सादगी लोगों के दिल को छू गई थी, लेकिन एक सवाल रह रहकर बेचैन कर रहा था क्या अन्ना की तरह देश कभी इरोम चानू शर्मिला के इस अनूठे बलिदान का सम्मान कर पाएगा?

     उस लौह महिला को सलाम करते चंद दोहे -
           गांधी से अन्ना तलक, अनशन के कई रूप
           चले जो 11 साल तक, वह अनशन भी खूब

          12 दिन अनशन चला, देश गया ज्यों जाग
          न बदला 11 साल में, मणिपुरियों का भाग

          मीडिया से सरकार तक, था अन्ना का शोर
          किसको फुरसत थी करे शर्मिला पर गौर

          मरते देखे लोग और गई सनाका खाय
          या बदले कानून अब, या ये जान ही जाय

          एक छोटे से राज्य की वह जांबाज कमाल
          जीते जी जो बन गई सबके लिए मिसाल



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