Sunday, December 30, 2012

दर्द के दोहे

दिसम्बर जाते जाते बहुत जख्म दे गया। नए साल का स्वागत करने के लिए मेरे पास सिर्फ दर्द के दोहे ही हैं। जुल्म की शिकार उस अनाम लड़की को हम दर्द के सिवा कुछ नहीं दे पाए। क्या वक्त हमें माफ कर पाएगा?

फिर वहशत के सामने टूट गई उम्मीद
देश जगाकर सो गई बिटिया गहरी नींद

देह में गहरे घाव थे, दिल था लहूलुहान
हैवानों से जूझती, कब तक नाजुक जान

अबके दब पाई नहीं, उस लड़की की आह
जुल्म के नंगे नाच का, सड़कें बनी गवाह

वह लड़की बेनाम सी, बन गई बड़ी मिसाल
सड़क पे उतरे लोग फिर गुस्से में हो लाल

दिल में सबके आग थी, आंखें थीं अंगार
औरत क्यों सहती रहे, मर्द के अत्याचार

खूब बढ़ी ये गंदगी, कर न पाए साफ
हम भी हैं दोषी बड़े, बिटिया करना माफ

इनको कैसे झेलता यह सारा संसार
इन नामर्दांे के लिए औरत सिर्फ शिकार

मानवता को नोंचते, जुल्मी के नाखून
बस डंडा फटकारता, नपुंसक कानून

सबको आजादी मिली, इतना रहा मलाल
औरत कब आजाद हुई, भारत मां बेहाल

शोकाकुल हैं लोग सब, सदमे में है देश
जाते जाते दे गई सबको बिटिया संदेश

दुनिया सुंदर है बहुत, वहशी आंखें खोल
हमला मत कर किसी पर आजादी अनमोल

 

Wednesday, December 12, 2012

घनघोर तरक्की

महंगाई की बन गई है सिरमोर तरक्की
क्या खूब हुई देश की घनघोर तरक्की

शातिरों ने पैसे को पावर में जो बदला
क्या हो गई है और सीनाजोर तरक्की

आगे जो बढ़ना है तो फिर दाम चुकाओ
जाने कहां ले जाएगी घुसखोर तरक्की

घर गया, जमीन गई, गांव भी गया
सुख चैन तक तो ले उड़ी ये चोर तरक्की

कुछ हुए अमीर, कई हो गए कंगाल
कितनों को भरमाये है चितचोर तरक्की

अफसर अगर चाटेंगे चापलूसी की चटनी
पा जाएंगे जल्दी ही चुगलखोर तरक्की

कुछ लोग है विकास की ही चाशनी में तर
गंावों के किनारे खड़ी कमजोर तरक्की

न जाने कभी आएगा क्या ऐसा जमाना
उस ओर तरक्की हो तो इस ओर तरक्की
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