Tuesday, October 25, 2011

अंधेरों की हलचलों में रोशनी पैदा करें

रोशनी की शुभकामनाएं
                       
(मजे की बात यह है कि आज अपने 54 साल पूरे हो गए)

अंधेरों की हलचलों में रोशनी पैदा करें
देश के सारे जिलों में रोशनी पैदा करें

जगमगा उठ्ठे जमीनें दीयों सी हर गांव में
अब किसानों के हलों में रोशनी पैदा करें

जहां बढ़ते हैं शिकारी अंधेरों के जाल ले
उन उनींदे जंगलों में रोशनी पैदा करें

बांट लें हर एक की तकलीफ अपनेआप हम
इस कदर अपने दिलों में रोशनी पैदा करें

जिंदगी मुश्किल सही पर ये क्या कम है दोस्तों
हम हमेशा मुश्किलों में रोशनी पैदा करें
                
                     (बरसों पहले एक दिवाली पर)
रोशनी को और क्या क्या चाहिए
तेल, बाती और दिया चाहिए

झिलमिलाते रहें दिये आंगनों में
और लइया की पुटरिया चाहिए

जगमगा उट्ठे रंगोली के रंग
आज इस आंगन को बिटिया चाहिए

घर के माथे पर चमकती जुगनुएं
और पांवों में पैजनिया चाहिए

तेज होती है अब दिये की लौ
और क्या तुझको सजनिया चाहिए

                                 26 अक्टूबर, 2011

Thursday, October 20, 2011

राम नाम की लूट

             कुछ लोग भारत भ्रमण पर निकलते हैं सामाजिक-साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए लेकिन कुछ नेता वैमनस्यता बढ़ाने के लिए भी रथयात्रा जैसा प्रोप्रोगंडा करते हैं। बीस साल पहले राम जन्मभूमि के नाम पर देश में बवाल पैदा करने के लिए एक वीर पुरुष ने रथयात्रा करके देश के अमन चैन को खतरे में डाल दिया था। अब वह वयोवृद्ध नेता फिर भारत भ्रमण पर निकले हैं। इस बार उनका मुद्दा भ्रष्टाचार है हालांकि वे अपनी पार्टी शासित राज्यों में होने वाले भ्रष्टाचार पर चुप हैं।
            जिन दिनों राम के नाम पर एक दल विशेष के लोग आग उगल रहे थे। कथित सन्यासिनें ऐसी भाषा बोल रही थीं जिसे सुनकर किसी भी संवेदनशील और समझदार इनसान को शर्म आने लगे। ऐसे मौके पर मैंने दुर्गा स्तुति करने वाली लोक धुन जस पर एक गीत लिखा था। वह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। उन दिनों पिपरिया में इस मुद्दे पर किशन पटनायक की सभा में कट्टरपंथियों ने हमला कर दिया था। कट्टरपंथियों से लोहा लेकर हमने किशनजी की सभा पूरी करवाई थी।
            सन तो याद नहीं, उस साल दिल्ली में लेखक, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने मानव श्रंखला बनाकर कट्टरपंथियों की करतूतों के प्रति विरोध जताया था। इस आयोजन में कई बड़े सेलिब्रिटी शामिल हुए थे। भीष्म साहनी भी मौजूद थे। बड़ा आयोजन था। वहां मैंने यह गीत सुनाया था। उसके तुरंत बाद ही शमशुल इस्लाम आए और यह गीत नोट कर ले गए थे।

यहां प्रस्तुत है वह गीत और साथ में एक गजल-

चला धरम का डंडा

राम जनम हथकंडा, चला धरम का डंडा

तथ्य आंकड़े कुछ भी मानें
ये इतिहास के पंडा, चला धरम का डंडा

कितने मरे भइया, कितने उजड़ गये
इनका जी नई ठंडा, चला धरम का डंडा

धरम के ठेकेदार, दंगे करायें
सूफी संत हैं गुण्डा, चला धरम का डंडा

छोड़ गरीबी भइया, महंगाई को
इनका एक अजंडा, चला धरम का डंडा

आने वाला कल भइया देखेगा तुमको
फोड़ दे सारा भंडा, चला धरम का डंडा

गजल

क्यों धरम के झगड़े तू बेवजह फंसे है
राम तो प्यारे यहां कण कण में बसे है

धरम तो इंसानियत की तरह दिल में है
ईंटों की इमारत में कहीं धरम बसे है

हम रोज गड़े मुरदे उखाड़ेंगे, लड़ेंगे
दुनिया भी फिर ऐसे तमाशे पे हंसे है

उनके मुंह से झाग फिर निकले जुनून में
जिनको सांप फिरकापरस्ती का डसे है

चल अब के मोहब्बत के बीज बोएं दिलों में
नफरत की इस दलदल में कहां यार धंसे है

Monday, October 3, 2011

किसान मजदूर संगठन के नेता पर पुलिसिया हमला बनाम मार न डंडा रे

           यह संभवतः 1989 की घटना है। जब जुन्हैटा में पुलिस ने किसान मजदूर संगठन के लोगों पर हमला कर दिया था। पुलिस ने मोहम्मद आजाद को बंदूक का कुंदा मारा था और हरगोविंद को गिरफ्तार कर लिया था। गांव के लोगों ने पुलिस को घेर लिया, तब हरगोविंद ने लोगों को समझाया और संघर्ष जारी रखने का एलान किया। यह शाम की घटना थी। हम रात भर पता करते रहे कि हरगोविंद को पुलिस ने कहां रखा है, लेकिन पता नहीं चला, होशंगाबाद के दोस्तों ने बताया पुलिस उसे लेकर वहां नहीं पहुंची। हम सब मित्र रात भर परेशान रहे। सुबह पता चला कि पुलिस ने हरगोविंद को रात भर सोहागपुर थाने की हवालात में रखा था।
          इस मुद्दे को लेकर समता संगठन और किसान मजदूर संगठन ने प्रदर्शन किया और पिपरिया के मंगलवारा चैराहे पर थाने के सामने आमसभा की। इस मौके के लिए मैंने एक गीत लिखा जो बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रदर्शन के दिन इस गीत का बोलबाला रहा। आमसभा शुरू होने से पहले मंच से यह गीत सुनाया गया और गजब हो गया। लोग गीत दोहराने लगे। दस मिनट का गीत करीब आधे घंटे तक गाया गया। थाने के सामने पानी का टैंकर खड़ा था। लोग उस पर चढ़ गए और नाच-नाचकर लगातार मार न डंडा रे गाते रहे। बड़ी मुश्किल से लोगों को रोका और आमसभा की कार्यवाही शुरू हो पाई।

यहां प्रस्तुत है वह गीत -

मार न डंडा रे
मार न डंडा रे
पुलिसिये, मार न डंडा रे
फूट गया जनता के सामने
तेरा भंडा रे....
जुल्मिये मार न डंडा रे.......

तू इस मेहनतकश को जनता को लूटे, मारे, खाये
बनते देख के इनका एका तू कैसे घबराये
भरने लगा है देख तेरे अब पाप का हंडा रे......

देखो सत्ताधारी डाकू जंगल में घुस आयें
भोली भाली जनता को ये देख देख गुर्रायें
सच की छाती पे मारें बंदूक का कुंदा रे......

तेरे झूठ का इक दिन हम मिलकर जवाब दे देंगे
तेरे इक इक अन्याय का गिनकर बदला लेंगे
तेरे डंडे में बांधेंगे अपना झंडा रे.....

मार न डंडा रे जुल्मिये
मार न डंडा रे
फूट गया जनता के सामने
तेरा भंडा रे........
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