Sunday, September 8, 2013

बंधु, अब तो अंखियें खोलो



(1)
बंधु, संत नहीं वह संता
बापू, बाबा, गुरू बनाकर भक्त हुआ है अंधा
ढोंगी संत कहावे संता, कई उनके गोरखधंधे
अंधियारे में रख भक्तों को उचकाएं बस कंधे
कथा सुनाएं, नाचे-गाएं, थिरकत हैं बेढंगे
जाने कितने हो गए बंधु बीच बजरिया नंगे
तंत्र मंत्र और भूत भगाने की हैं बातें कोरी
भरमाए सब भक्तों को, बकबक करे अघोरी
राम को नाम रखे से होए न कोई अवतारी
पोंगा पंडित न कर पाए देर तलक मक्कारी

(2)
बंधु, कैसे गुरूघंटाल
भक्त बिचारे चना चबाएं और वे रगड़ें माल
राम नाम की लूट कहें और बन जाएं लुटेरे
बात करें उजियारों की और भर जाएं अंधेरे
गुरू दीक्षा उसे मिलेगी जो चुकाएगा दाम
पैसा दो तो ठुमक के गाएं जै जै सीताराम
खूब खुपडि़या में मलता है जैसे गंजा तेल
बाबाजी भी खूब चलाएं धरम करम की रेल
भजन-कीर्तन, कथा-प्रवचन ऐसी रेलमपेल
बुड्ढा ऐसे मटके जैसे हवा में झूमत बेल

(3)
बंधु, संता कहे ऊ ला ला
भक्तिन के जो गले पड़ी है वह फेरेंगे माला
भक्त हैं सारे सेवक उसके भक्तिन हैं मधुबाला
खुद बन जाए कृष्ण कंहैया रास रचाए आला
संता कहते सुनो गोपियो ओ मेरी चितचोर
घोर बुढ़ौती में भी काया कहवे है वन्स मोर
गुरू बनाया है तो सौंपो जल्दी अपनी देह
गुरू अगर संतृप्त हुआ तो बरसेगा फिर नेह
बाबाजी के भोग विलास को कुटिया है तैयार
हुश्न को लेकर हाजिर होगा जल्दी सेवादार

(4)
बंधु, राम मिले न आशा
भक्त बिचारे भौचक ठाड़े, छाई घोर निराशा
गुरू बनाया था जिसको वो निकला व्यभिचारी
इक नाबालिग पर ही बुड्ढा चला़ गया है आरी
चाय पिलाने वाला कैसे बन बैठा गुरू ज्ञानी
सत्संग की आड़ में उसकी छिपी नहीं शैतानी
गुरुकुल को भी बाबाजी ने बना दिया है मंडी
मुश्किल में हैं मोड़ा-मोड़ी और हंसे पाखंडी
आखिर एक बहादुर बच्ची ने कर दिया खुलासा
सत्संग के नाम पे होता था हर रोज तमाशा

(5)
बंधु, समझो बाबागीरी
उसका भाई बड़ा बलशाली, नाम है दादागीरी
नेता-अफसर चाकर उसके, राजनीति है खेला
दौलत, शोहरत, अय्याशी का रोज लगाए मेला
भूमि हड़पी, दौलत हड़पी, बन गए कारोबारी
खूब कमाई के ढेरों धंधे,, बाबा है व्यापारी
गाल बजाए, नाचे-खाए, भक्तों को लतियाय
ऐसा कपटी बाबा है ये, खुदई गया बौराय
कब तक ऐसे लंपट बाबा को चुकाओगे दाम
उसके मन में हैं ढकोसले, मुट्ठी में न राम

(6)
बंधु, छोड़ो अंधविश्वास
तंत्र मंत्र ओ जादू टोना के मत बनियो दास
झाड़ा फूंकी, अटरम सटरम और गंडा तावीज
इनसे कोई बला टले न, भगवन जाएं खीज
जैसी करमगति है वैसा ही पाओगे फल
आज करोगे जैसा भी तुम वैसा होगा कल
एैरे गैरे को गुरु बना न होगी कम मुश्किल
खुद पर कर विश्वास तभी मिल पाएगी मंजिल
बाबाओं के चक्कर में जीवन हो जाए झंड
मन में है भगवान तो काहे कीजे फिर पाखंड


 नरेंद्र कुमार मौर्य

4 comments:

  1. जबरदस्त है जी पद रचना। अद्‌भुत।

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  2. ab to akhiyan kholo main aapne pakhand, andhvishvash aur babaon ke khilaf jabrdast kataksh kiya hai. pakhand, andhvishvash aur babaon ke khilaf aap isi tarah likhte rahein. ab to janta ki aankhe khulani chahiye.
    chand khan rehmani

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  3. ab to akhiyan kholo main aapne pakhand, andhvishvash aur babaon ke khilaf jabrdast kataksh kiya hai. pakhand, andhvishvash aur babaon ke khilaf aap isi tarah likhte rahein. ab to janta ki aankhe khulani chahiye.
    chand khan rehmani

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  4. आसा का पाखंड
    कर दिया आपने झंड
    नरेन्द्र जी आप हैं प्रचंड।

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