Sunday, March 13, 2011

आल्हा

आल्हा: अपनी-तुपनी


आल्हा कि सुमरनी


बुदनी कि कहानी #1


बुदनी कि कहानी #2


बुदनी कि कहानी #3


ना डारे कोई डाका रे



आल्हा (1) 
आल्हा (2)
आल्हा (3)
आल्हा (4)
आल्हा (5)
आल्हा (6)

आल्हा (7)

आल्हा (8)
आल्हा (9)
आल्हा (10)
आल्हा (11)
आल्हा (12)
आल्हा (13)
आल्हा (14)
आल्हा (15)
आल्हा (16)
आल्हा (17)
आल्हा (18)
आल्हा (19)

1 comment:

  1. इस आल्‍हा की एक धुंधली याद है मन में। धीरे धीरे इसे पूरा लगा दें। अपनी तरह का अलग काम। कविता की मूल परम्‍परा। मुझे याद आता है कि अंग्रेजी की किसी पत्रिका, शायद फ्रंटलाइन, में एक लेख भी आया था इस पर।

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