Monday, October 18, 2010

एक दोस्त की याद


यह फोटो संभवतः 1977 का है।
नाटक का नाम याद नहीं आ रहा,
लेकिन हम और मदन नाटक में
महत्वपूर्ण किरदार निभा रहे थे।

प्रिय गोपाल,

मदन गुप्ता के निधन की खबर मिली। दिल उदास हो गया। उसके साथ बिताए गए कितने ही पल याद आ गए। ये कमबख्त कैंसर बीमारी ही ऐसी हैं। इस बीमारी ने कई अपनों को छीन लिया है। जब तुमने मदन के बारे में बताया तो एक क्षण के लिए मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। यह सच है कि एक जमाने से हमारी मुलाकात नहीं हुई थी, लेकिन एक जमाना ऐसा भी था जब कोई दिन नहीं होता था जब हम मिले न हों। हम लोग स्कूली दिनों से लेकर कालेज तक साथ थे। चाहे छात्र राजनीति हो या सांस्कृतिक कार्यक्रम हम हर जगह साथ थे। वैसे दिनेश और हम एक कक्षा में थे, लेकिन गंभीर वार्तालाप मदन से ही होता था। मुझे याद है 1976 से लेकर 1980 तक हमने कई बार कालेज के मंच पर एक  साथ काम किया है। पुराने लोग जानते हैं कि उन दिनों फिजिक्स के प्रोफेसर मृणाल सेन कालेज में थे। वे सोशल गेदरिंग की तैयारी करवाते थे। मुख्य नाटक के चयन से लेकर कलाकारों का चुनाव और रिहर्सल सब सेन साहब के जिम्मे होता था। मुख्य नाटक करीब एक-डेढ़ घंटे का होता था। रिहर्सल में मदन सबसे अधिक व्यवस्थित और अनुशासित रहता था। रिहर्सल भी करीब महीने भर चलती थी। उस जमाने का कालेज का वार्षिकोत्सव अनूठा होता था। पूरा शहर ही आरएनए स्कूल में इकट्ठा हो जाता था। तीन-चार घंटे तक दर्शक सिर्फ कार्यक्रम ही देखते रहते थे।

एक बार शायद 1978 में, महालहा साहब प्रिंसिपल थे। तब एक दबंग छात्र संघ अध्यक्ष ने किसी बात पर प्रोफेसर सेन को बेइज्जत कर दिया। उनका हाथ पकड़कर झटक दिया। सेन साहब इतने आहत हुए कि उन्होंने सोशल गेदरिंग की तैयारी से हाथ खींच लिया। हम कुछ सीनियर कलाकारों को भी यह बात बुरी लगी। हमने तय किया कि इस साल हम गेदरिंग में भाग नहीं लेंगे। हम और मदन ने ही इस मुहिम को आगे बढ़ाया और एक भी सीनियर कलाकार मंच पर नहीं उतरा। हांलाकि बाद में राजेंद्र ने बहुत कोशिश की कि पुराने कलाकार भी काम करें और गेदरिंग में जान आ जाये, लेकिन कलाकारों को ठेस लगी थी, उनके गुरु का अपमान हुआ था इसलिए वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। इस घटना के बाद फिर कभी कालेज की सोशल गेदरिंग में वो बात नहीं आ पाई।

कालेज की राजनीति में भी मदन और हम साथ थे। उन दिनों कालेज में दबंगई का ही बोलबाला था। उनके खिलाफ होना ही बड़ी बात थी। कालेज के पूरे पांच साल हमारी राह अलग ही रही। उम्र के इस मोड़ पर पुराने साथियों का बिछड़ना बहुत सालता है। मैं जल्द ही पिपरिया आकर दिनेश और मदन के परिवार से मिलूंगा। इस वक्त तो मैं बस उनके लिए दुआ कर सकता हूं। ईश्वर उन्हें यह अपार दुख सहने की हिम्मत दे। और अपने प्रिय दोस्त के लिए कहूंगा ‘जल्दी विदा हो गए दोस्त, लेकिन तुमने शानदार जीवन जिया। तुम्हारे साथ बिताए गए पल हमेशा याद रहेंगे।’

तुम्हारा नरेन्द्र |

1 comment:

  1. प्रिय नरेन्द्र
    तुम्हे याद होगा क़ि जिस वर्ष तुम छात्र संघ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे थे |
    उसी साल कॉलेज में यूथ पेनल से परसराम पटेल और यंग ब्लड पेनल से मै उम्मीदवार था |
    मदन भाई मुझे फार्म वापिस उठाने के लिए चमकाने और समझाने मुरब्बे वाली दुकान पर आये थे |
    खैर... मै उनकी धमकी के आगे नहीं झुका क्योकि मुझे पलिया ग्रुप का समर्थन था |
    तुम्हारे पिपरिया से जाने के बाद एवं उनके शिक्षक बन जाने के बाद मदन भाई से हमारे और आत्मीय रिश्ते हो गए थे |
    हमारी हर गोष्ठियों में उनकी मौजूदगी रहती थी |उनका अपार स्नेह और सम्मान हमें मिला |
    तुम्हारे प्यारे दोस्त और हमारे प्यारे मदन भाई क़ी स्मृति को नमन |

    गोपाल राठी
    सांडिया रोड, पिपरिया 461775

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