Thursday, October 18, 2012

कतरा कतरा जिंदगी लगे

इन दिनों सिर्फ दर्द का दरिया ही है। डुबकी लगाते रहिए या डूब कर मर जाइए। बीते दिनों बहुत कुछ लिखा गया, यात्राएं हुईं,  मगर इस दिल को तसल्ली न हुई। दर्द कुछ ऐसे बयान होता है -

कतरा कतरा जिंदगी लगे
दर्द की तन्हा नदी लगे

मेहमान बनके आई है खुशी
और उधार की हंसी लगे

अपने से लगें ये अंधेरे
क्यों पराई रोशनी लगे

ढह गए यकीन के किले
दिलफरेब आशिकी लगे

है वही जमीन ओ आस्मां
बदला बदला आदमी लगे

झूठ और गवाह पर टिका
इंसाफ भी तेरा ठगी लगे

पीछा करना भी ख्वाब का
क्यों उन्हें आवारगी लगे

सहमा सहमा सा है ये समा
और उदास चांदनी लगे

तेरी रहनुमाई भी कमाल
रहबरी भी राहजनी लगे

झूठ बोलना गुनाह है
सच कहूं तो दिल्लगी लगे

मुझको देगा क्या खुदा पनाह
उसमें भी तो पैरवी लगे

4 comments:

  1. दर्द .......... चला जाएगा......नहीं जाएगा तो जगाए रखेगा....ये भी एक पहलू है उसका....

    प्‍यारे ख़ान चाचा ...............

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  2. कतरा सी जिंदगी लगे
    दर्द की तन्हा नदी लगे

    मेहमां बनके आई खुशी
    अब उधार की हंसी लगे

    अपने से क्यों लगें अंधेरे
    गैर सी क्यों रोशनी लगे

    ढहे हमारे किले यकीनी
    दिलफरेब, आशिकी लगे

    आपकी अभिव्यक्ति प्रभावशाली व दिल को छूने में समर्थ हैं , बधाई आपको !

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    Replies
    1. सुझावों का शुक्रिया सतीश भाई। इस ग़ज़ल का हर शेर रिदम में है। मैंने पिछली यात्राओं में पिपरिया और भोपाल में दोस्तों की महफिल में इस ग़ज़ल को लय और ताल के साथ गाकर सुनाया था।

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    2. बड़ी प्यारी ग़ज़ल है , कभी हमें भी बुलाइएगा !

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