
संकट की घड़ी में भी लोग कमाने से नहीं चूके। पांच सौ रुपए का एक प्लेट चावल था। 180 रुपए की एक रोटी बिकी। पांच सौ रुपए वाले कमरे के तीन हजार रुपए वसूले गए। लूट की घटनाएं भी कम नहीं हैं। दूसरी तरफ ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं जब स्थानीय लोगों ने फंसे हुए लोगों को खाना खिलाया और उनकी जिंदगी बचाई। सेना के जवान भी शानदार काम कर रहे हैं। ऐसे संकटमोचक जांबाजों को सलाम, लेकिन जो घडि़याली आंसू बहाकर धंधा बढ़ाने की फिराक में हैं, उनसे सावधान रहने की जरूरत है।
उत्तराखंड में करीब 60 गांव बह गए हैं। केदारनाथ में 90 धर्मशालाएं भी बह गईं। इस आपदा ने हमारे विकास पुरुषों के लिए रास्ता साफ कर दिया है। अब तो उस खाली जमीन का कोई माई-बाप भी नहीं रह गया है। उस पर अब नेता, नौकरशाह और बिल्डर विकास की इमारत खड़ी करेंगे। आखिर उत्तराखंड को इस आपदा से उबारना भी तो है।
दुख में दोहे
खेल ये कुदरत का नहीं, इंसानी करतूत
मोहना तेरे विकास का ये है असली रूप
पीटे ढोल विकास का, खोदे रोज पहाड़
कुदरत भी कितना सहे, तेरा ये खिलवाड़़
बड़ी मशीनें देखकर, रोये खूब पहाड़
कैसे झेलेगा भला जब आएगी बाढ़
खनन माफिया से हुआ सत्ता का गठजोड़
पैसा खूब कमाएंगे, धरती का दिल तोड़
खंड खंड बहता रहा हाय उत्तराखंड
मलबा बन गई जिंदगी, रुका नहीं पाखंड
आपदा राहत कोष से, होंगे कई अमीर
जनता बिन राहत मरे, वे खाएंगे खीर
धरम करम के चोचले, दान पुण्य भी खूब
भक्त बचे कैसे भला, खुद भगवन गए डूब
गांव बहे और हो गई, खाली यहां जमीन
बिल्डर लेकर आएगा, अबके नई मशीन
नरेंद्र कुमार मौर्य