देवगांव, पोसार फिर, कहें पिपरिया आज,
गोंड बने मजदूर अब, कभू करत थे राज |
गोंड बने मजदूर अब, कभू करत थे राज |
पेड़ तो बूढ़े हो गए, गलियां हुईं जवान,
और सयाने हो गए, आंगन और दहलान |
और सयाने हो गए, आंगन और दहलान |
कहां बैल, गाड़ी कहां, कहां होय चूं चर्र,
सबरे मिलके ढूंढ़ रये, कहां गोरैया फुर्र |
सबरे मिलके ढूंढ़ रये, कहां गोरैया फुर्र |
दिन बदले और कट गई चैराहे की नीम,
चैराहे की टीस यह, जैसे हुआ यतीम |
चैराहे की टीस यह, जैसे हुआ यतीम |
बाग बगीचे लापता, फूल गए मुरझाय,
मालन का माला गुंथे, कोई देय समझाय |
मालन का माला गुंथे, कोई देय समझाय |
चैगड्डा, टप पान के, या गलियों के छोर,
टूटे से न टूटती, थी बातों की डोर |
टूटे से न टूटती, थी बातों की डोर |
कैसे रपटत जात थे, मछवासा के पास,
अब न वो रिपटा रहो, न नदिया की आस |
अब न वो रिपटा रहो, न नदिया की आस |
माटी नहीं कुम्हार की, न बसोड़ के बांस,
पुश्तैनी धंधे मिटे, रोजी बन गई फांस |
पुश्तैनी धंधे मिटे, रोजी बन गई फांस |
होली के हुड़दंग में, गाली लागत थी खीर,
सुर में ही गरियात थे, कहते उसे कबीर |
सुर में ही गरियात थे, कहते उसे कबीर |
बब्बू भैया से मिले, गया जमाना बीत,
कबसे रस्ता देख रये, कई अधूरे गीत |
कबसे रस्ता देख रये, कई अधूरे गीत |
डग डग करता डगडगा, धड़धड़ करती रेल,
पुल पर बच्चों ने करे, जाने कितने खेल |
पुल पर बच्चों ने करे, जाने कितने खेल |
आज जो है वो कल नहीं, यह कुदरत की रीत,
काहे फिर खोजत फिरे, कहां गए दिन बीत |
काहे फिर खोजत फिरे, कहां गए दिन बीत |
बाबा बैरागी मिले, साधु-संत, फकीर,
पर अपने संगे चलो, पांव-पांव कबीर |
पर अपने संगे चलो, पांव-पांव कबीर |
चाहे गलियों में चलें, चाहे चढ़ें पहाड़
जब तक रागी न बने, झोंकत रहिए भाड़ |
जब तक रागी न बने, झोंकत रहिए भाड़ |