Thursday, October 20, 2011

राम नाम की लूट

             कुछ लोग भारत भ्रमण पर निकलते हैं सामाजिक-साम्प्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए लेकिन कुछ नेता वैमनस्यता बढ़ाने के लिए भी रथयात्रा जैसा प्रोप्रोगंडा करते हैं। बीस साल पहले राम जन्मभूमि के नाम पर देश में बवाल पैदा करने के लिए एक वीर पुरुष ने रथयात्रा करके देश के अमन चैन को खतरे में डाल दिया था। अब वह वयोवृद्ध नेता फिर भारत भ्रमण पर निकले हैं। इस बार उनका मुद्दा भ्रष्टाचार है हालांकि वे अपनी पार्टी शासित राज्यों में होने वाले भ्रष्टाचार पर चुप हैं।
            जिन दिनों राम के नाम पर एक दल विशेष के लोग आग उगल रहे थे। कथित सन्यासिनें ऐसी भाषा बोल रही थीं जिसे सुनकर किसी भी संवेदनशील और समझदार इनसान को शर्म आने लगे। ऐसे मौके पर मैंने दुर्गा स्तुति करने वाली लोक धुन जस पर एक गीत लिखा था। वह गीत बहुत लोकप्रिय हुआ। उन दिनों पिपरिया में इस मुद्दे पर किशन पटनायक की सभा में कट्टरपंथियों ने हमला कर दिया था। कट्टरपंथियों से लोहा लेकर हमने किशनजी की सभा पूरी करवाई थी।
            सन तो याद नहीं, उस साल दिल्ली में लेखक, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने मानव श्रंखला बनाकर कट्टरपंथियों की करतूतों के प्रति विरोध जताया था। इस आयोजन में कई बड़े सेलिब्रिटी शामिल हुए थे। भीष्म साहनी भी मौजूद थे। बड़ा आयोजन था। वहां मैंने यह गीत सुनाया था। उसके तुरंत बाद ही शमशुल इस्लाम आए और यह गीत नोट कर ले गए थे।

यहां प्रस्तुत है वह गीत और साथ में एक गजल-

चला धरम का डंडा

राम जनम हथकंडा, चला धरम का डंडा

तथ्य आंकड़े कुछ भी मानें
ये इतिहास के पंडा, चला धरम का डंडा

कितने मरे भइया, कितने उजड़ गये
इनका जी नई ठंडा, चला धरम का डंडा

धरम के ठेकेदार, दंगे करायें
सूफी संत हैं गुण्डा, चला धरम का डंडा

छोड़ गरीबी भइया, महंगाई को
इनका एक अजंडा, चला धरम का डंडा

आने वाला कल भइया देखेगा तुमको
फोड़ दे सारा भंडा, चला धरम का डंडा

गजल

क्यों धरम के झगड़े तू बेवजह फंसे है
राम तो प्यारे यहां कण कण में बसे है

धरम तो इंसानियत की तरह दिल में है
ईंटों की इमारत में कहीं धरम बसे है

हम रोज गड़े मुरदे उखाड़ेंगे, लड़ेंगे
दुनिया भी फिर ऐसे तमाशे पे हंसे है

उनके मुंह से झाग फिर निकले जुनून में
जिनको सांप फिरकापरस्ती का डसे है

चल अब के मोहब्बत के बीज बोएं दिलों में
नफरत की इस दलदल में कहां यार धंसे है

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