देर से ही सही पर सुमरनी में वापसी अपनी ताजा ग़ज़ल से
खुदाया जिंदगानी क्या
मिरे होने के मानी क्या
क्यों दुनिया में हम आए
है किस्सा कहानी क्या
है दिल का धड़कना भी
कोई धुन पुरानी क्या
हयात ओ क़जा है खेल
इसमें मेहरबानी क्या
कातिल जान ही लेगा
उसकी मेजबानी क्या
मकसद है न महबूबा
करे जोश ए जवानी क्या
हम गूंगे हैं जन्मों के
कहेंगे मुंहजुबानी क्या
शजर गुजरे दिनांे का हूं
मिलेगा खाद-पानी क्या
घुप्प अंधेरे में जैसे चिमनी काम करती है वैसे ही कभी-कभी लफ़्ज भी करते हैं। चंद अशआर आपस में मिल कर ऐसा ताना बाना बुन लेते हैं कि मन खुश हो जाता है। कितनी मामूली खुशी है यह, लेकिन इतनी कीमती कि मुुफलिसी भी शर्मा जाए।
नरेंद्र कुमार मौर्य
खुदाया जिंदगानी क्या
मिरे होने के मानी क्या
क्यों दुनिया में हम आए
है किस्सा कहानी क्या
है दिल का धड़कना भी
कोई धुन पुरानी क्या
हयात ओ क़जा है खेल
इसमें मेहरबानी क्या
कातिल जान ही लेगा
उसकी मेजबानी क्या
मकसद है न महबूबा
करे जोश ए जवानी क्या
हम गूंगे हैं जन्मों के
कहेंगे मुंहजुबानी क्या
शजर गुजरे दिनांे का हूं
मिलेगा खाद-पानी क्या
घुप्प अंधेरे में जैसे चिमनी काम करती है वैसे ही कभी-कभी लफ़्ज भी करते हैं। चंद अशआर आपस में मिल कर ऐसा ताना बाना बुन लेते हैं कि मन खुश हो जाता है। कितनी मामूली खुशी है यह, लेकिन इतनी कीमती कि मुुफलिसी भी शर्मा जाए।
नरेंद्र कुमार मौर्य