उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र का उत्सव चल रहा है। आज नोएडा में मतदान है। हम अभी सेक्टर 34 के कम्यूनिटी सेंटर में वोट डालकर लौटे हैं। हमारा वोट किसी प्रत्याशी के लिए नहीं था। हमने लोकतंत्र को वोट दिया है इसलिए कि लोकतंत्र से बेहतर व्यवस्था कहीं नजर नहीं आती लेकिन हमारे देश के लोकतंत्र में हजारों खामियां भी हैं। नोएडा में मुझे एक भी ऐसा प्रत्याशी नहीं मिला जिसे वोट दिया जाए। सरकार बनाने को आतुर एक बेसब्र दल ने यहां से गैंग रेप के आरोपी को टिकट दिया है। कांग्रेस और भाजपा ने शहर के सबसे बड़े दो डाक्टरों को मैदान में उतारा है। दोनों डाक्टरों के बड़े क्लीनिक हैं। उन्होंने इतना पैसा कमा लिया है कि अब उन्हें मरीज देखने की जरूरत नहीं है। अब वे संसद या विधानसभा में बैठकर सत्ता का स्वाद चखना चाहते हैं। इस सीट से 29 प्रत्याशी मैदान में हैं। दो ईवीएम मशीन हैं जिनमें वोट देना है। जब हम वोट डालने पहुंचे मतदानस्थल पर सन्नाटा था। चंद पुलिस वाले, दो चार दस लोग] बस।
कई दिनों से सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर मतदाताओं को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है। एक अखबार तो लोगों को राजनीति सिखाने का दंभ भर रहा था और खुद ही अपनी पीठ भी थपथपाता था, लेकिन उस अखबार ने भयावह होते जा रहे इस लोकतंत्र की खामियों को ठीक करने के लिए राजनीतिक दलों पर न दबाव डाला न उन्हें सुझाव दिए। कभी कहते थे अखबार लोकतंत्र का चैथा खम्बा हैं, लेकिन अब यह खम्बा पटरी से उतरी लोकतंत्र की गाड़ी के लिए जैक का काम भी नहीं पा कर रहा है।
लोकतंत्र के उत्सव के दौरान दो पुराने गीत याद आए। एक गीत कबीर से प्रेरणा लेकर बरसों पहले लिखा गया था और दूसरे गीत में लोकतंत्र की कुछ खामियांे का जिक्र है। यह दो-तीन साल पुराना गीत है। इस मौके पर दोनों गीतों को याद करना गलत नहीं होगा, तो चलिए बरसों बाद उन गीतों को हम एक बार फिर गुनगुनाएं।
कई दिनों से सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर मतदाताओं को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है। एक अखबार तो लोगों को राजनीति सिखाने का दंभ भर रहा था और खुद ही अपनी पीठ भी थपथपाता था, लेकिन उस अखबार ने भयावह होते जा रहे इस लोकतंत्र की खामियों को ठीक करने के लिए राजनीतिक दलों पर न दबाव डाला न उन्हें सुझाव दिए। कभी कहते थे अखबार लोकतंत्र का चैथा खम्बा हैं, लेकिन अब यह खम्बा पटरी से उतरी लोकतंत्र की गाड़ी के लिए जैक का काम भी नहीं पा कर रहा है।
लोकतंत्र के उत्सव के दौरान दो पुराने गीत याद आए। एक गीत कबीर से प्रेरणा लेकर बरसों पहले लिखा गया था और दूसरे गीत में लोकतंत्र की कुछ खामियांे का जिक्र है। यह दो-तीन साल पुराना गीत है। इस मौके पर दोनों गीतों को याद करना गलत नहीं होगा, तो चलिए बरसों बाद उन गीतों को हम एक बार फिर गुनगुनाएं।
सारी दुनिया की सुनो आज उलट दें रीत
जीती पाली हार है, हारी पाली जीत
उलट दैहें जो खाका रे....
जीती पाली हार है, हारी पाली जीत
उलट दैहें जो खाका रे....
बंदरा सब मिलकर लड़ें अबकी बेर चुनाव
भाषण दैवे आएगा, कौवा कांव कांव
वोट तुम दइयो काका रे....
गदहा अब पूजा करे, बजा बजा के ढोल
मंत्र पढ़ेगी लोमड़ी, जोर जोर से बोल
न खइयो कोई सनाका रे.....
मंत्र पढ़ेगी लोमड़ी, जोर जोर से बोल
न खइयो कोई सनाका रे.....
शेर करेगा चाकरी, मच्छर करहैं राज
ढोर बनेंगे मंत्री, सबको एकई काज
वे फोड़े रोज पटाखा रे......
घूम घूम के दे रओ, सियार सबहे उपदेश
बीस चार सौ सूत्र हैं, सबई एक सी डिरेस
पहने के डारो डाका रे......
बीस चार सौ सूत्र हैं, सबई एक सी डिरेस
पहने के डारो डाका रे......
ये लोकतंत्र कैसा
शोक में लोक और तंत्र है गुलजार
देश में खिजां है मगर सदन में बाहर
है जिन्दा आदमी भी कागज के वोट जैसा
ये लोकतंत्र कैसा
देश में खिजां है मगर सदन में बाहर
है जिन्दा आदमी भी कागज के वोट जैसा
ये लोकतंत्र कैसा
बड़े गुंडे और मवाली करें तंत्र की रखवाली
सहमी सी रहे जनता, डरकर बजाये ताली
अब चुनाव में भी करतब दिखाए भैंसा
ये लोकतंत्र कैसा
सहमी सी रहे जनता, डरकर बजाये ताली
अब चुनाव में भी करतब दिखाए भैंसा
ये लोकतंत्र कैसा
जनता के घर में चोरी और मुनाफाखोरी
न जाने कब भरेगी, नेताओं की तिजोरी
बुत बनाएं अपना और खर्च सबका पैसा
ये लोकतंत्र कैसा
न जाने कब भरेगी, नेताओं की तिजोरी
बुत बनाएं अपना और खर्च सबका पैसा
ये लोकतंत्र कैसा
ये लोकतंत्र कैसा
दागी के दाग जैसा, ये लोकतंत्र कैसा
पैसे से बना पैसा, ये लोकतंत्र ऐसा
न मेरे तेरे जैसा, ये लोकतंत्र कैसा
ये लोकतंत्र कैसा, ये लोकतंत्र कैसा